नई दिल्ली। 42 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर आइएनडीआइए गठबंधन की अगुआई कर रही तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी बड़ा झटका दिया है। ममता के इस फैसले से साफ हो गया है कि भले ही वे बिहार में नीतीश कुमार की तरह आइएनडीआइए गठबंधन से अलग नहीं हुई हैं मगर बंगाल से लेकर असम तक वे कांग्रेस के खिलाफ भी अपने उम्मीदवार उतारेंगी।
बंगाल के बाहर असम और मेघालय जैसे पूर्वोत्तर राज्यों की कुछ सीटों पर तृणमूल के चुनाव लड़ने की घोषणा कर दीदी ने यह साफ भी कर दिया। टीएमसी के इस कदम के बाद बंगाल में अब कांग्रेस और वामदलों के पास मिलकर चुनाव लड़ने के सिवाय अन्य विकल्प नजर नहीं आ रहा है। तृणमूल के इस फैसले से आइएनडीआइए गठबंधन को झटका लगने का संकेत ममता की उम्मीदवारों की घोषणा पर सामने आयी प्रतिक्रिया से भी मिलता है।टीएमसी उम्मीदवारों के एलान के तत्काल बाद कांग्रेस के संचार महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पर पोस्ट में कहा कि हम मिलकर चुनाव लड़ने की मजबूत हिमायत करते रहे हैं। ऐसे में किसी भी समझौते को बातचीत के माध्यम से अंतिम रूप दिया जाना चाहिए और एकतरफा घोषणा नहीं करनी चाहिए। हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पार्टी की ओर से अब भी दीदी से समझौते की गुंजाइश होने की संभावनाएं खत्म नहीं होने का संदेश देने की कोशिश करते हुए कहा कि ”हमारे दरवाजे हमेशा खुले हैं और उम्मीदवारों के नामांकन वापसी से पहले कभी भी गठबंधन हो सकता है।”
वहीं जयराम ने कहा कि कांग्रेस ने बार-बार पश्चिम बंगाल में तृणमूल से सम्मानजनक सीट-बंटवारा समझौता करने की पहल की है और कांग्रेस चाहती थी कि आइएनडीआइए गठबंधन एकजुट होकर भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़े। ममता बनर्जी ने कांग्रेस को गठबंधन करने के लिए लोकसभा की उन दोनों सीटों को देने की पेशकश की थी जिस पर वर्तमान में उसके सांसद हैं। मगर कांग्रेस को यह प्रस्ताव मंजूर नहीं था और पार्टी सूबे की कम से कम छह सीटें समझौते में चाहती थी। खरगे और राहुल गांधी दोनों की इस संदर्भ में ममता बनर्जी से चर्चा हुई मगर तृणमूल कांग्रेस का रूख लचीला नहीं हुआ और रविवार को सभी 42 सीटों के उम्मीदवारों का एक साथ ऐलान कर दीदी ने अपनी तरफ से बंगाल में आइएनडीआइए के एकजुट चुनाव मैदान में जाने का रास्ता बंद कर दिया। कांग्रेस के लिए मुश्किल स्थिति यह है कि बंगाल में टीएमसी बनाम भाजपा के बीच हुए राजनीतिक ध्रुवीकरण को देखते हुए सूबे में उसके पास ज्यादा विकल्प नहीं है। तृणमूल से गठबंधन कर कांग्रेस इस चुनाव में वामदलों से सीधे चुनावी गठजोड़ से बचने का रास्ता निकलने की उम्मीद कर रही थी। केरल में कांग्रेस की अगुवाई वाला यूडीएफ और सत्ताधारी वामपंथी दलों का गठबंधन एलडीएफ आमने-सामने के मुकाबले में है। इस लिहाज से कांग्रेस और वामदलों के राजनीतिक विरोधाभासी रूख को भाजपा चुनाव में आक्रामक तरीके से उठाएगी। केरल कांग्रेस के लिए बेहद अहम है क्येांकि लोकसभा में पार्टी के सीटों का आंकड़ा बढ़ाने में इस सूबे की भूमिका महत्वपूर्ण है। पिछले चुनाव में कांग्रेस को केरल से ही सबसे अधिक 16 लोकसभा सीटें मिली थी। ममता के फैसले के बाद आइएनडीआइए की छतरी के नीचे तृणमूल से गठबंधन कर कांग्रेस वामदलों से किनारा करने का रास्ता नहीं निकाल पायी है। इतना ही नहीं दीदी ने कांग्रेस की सिरदर्दी इस घोषणा के साथ और बढ़ा दी है कि मेघालय तथा असम जैसे राज्यों में भी उनकी पार्टी लोकसभा की कुछ सीटें लड़ेगी। इन दोनों राज्यों के अलावा पूर्वोत्तर की किसी सीट पर टीएमसी का उम्मीदवार उतरता है तो वह सीधे कांग्रेस और आइएनडीआइए गठबंधन दोनों को नुकसान पहुंचाएगा।