इंफाल। मणिपुर हाई कोर्ट ने अपने आदेश 27 मार्च, 2023 के उस पैराग्राफ को हटाने का आदेश दिया है जिसमें राज्य सरकार से मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सूची में शामिल करने पर जो विचार करने का आग्रह किया गया था। हाई कोर्ट ने उक्त पैराग्राफ सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के रुख के विरुद्ध माना हाई कोर्ट के 27 मार्च के उक्त आदेश की वजह से राज्य में जातीय हिंसा भड़की थी जिसमें हिंसा में 200 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है।
जस्टिस गोलमेई गाईफुलशिलु की एकल पीठ ने बुधवार को एक पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के दौरान उक्त आदेश को रद कर दिया। पिछले वर्ष के फैसले में उक्त पैराग्राफ में कहा गया था कि राज्य सरकार मैतेई समुदाय को जल्द से जल्द एसटी सूची में शामिल करने के लिए याचिकाकर्ता के मामले पर विचार करेगी। इसके लिए सरकार को आदेश प्राप्त होने की तिथि से चार हफ्ते का समय दिया गया था। जस्टिस गाईफुलशिलु ने अपने फैसले में एसटी सूची में संशोधन के लिए भारत सरकार द्वारा निर्धारित प्रक्रिया की ओर इशारा करते हुए उक्त आदेश को हटाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा, जनजातीय मामलों के मंत्रालय की 2013-14 की रिपोर्ट में संवैधानिक प्रोटोकाल का जिक्र करते हुए अदालत ने अपने 19 पृष्ठों के फैसले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक व्याख्या के साथ तालमेल की जरूरत को रेखांकित किया। साथ ही संविधान पीठ के नवंबर, 2000 में दिए गए निर्णय में एसटी के वर्गीकरण से संबंधित न्यायिक हस्तक्षेप पर विधायी अधिकार क्षेत्र को रेखांकित किया। संविधान पीठ ने स्पष्ट किया था कि अदालतों को ऐसे वर्गीकरण निर्धारित करने में अपने अधिकार क्षेत्र से आगे नहीं बढ़ना चाहिए। 27 मार्च, 2023 के आदेश के परिणामस्वरूप भड़की हिंसा के बाद सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई थीं जिनमें हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाएं भी शामिल हैं। शीर्ष अदालत ने 17 मई, 2023 के हाई कोर्ट के आदेश को आपत्तिजनक बताया था।