श्रीनगर गढ़वाल(ब्यूरो)। 23 अगस्त 2024 को राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस के उपलक्ष्य में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के रिमोट सेंसिंग एंड जी0आई0एस0 एप्लीकेशन विभाग, रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेल तथा इंस्टीटूशन इन्नोवेशन कौंसिल द्वारा, भौतिकी विज्ञान विभाग के सभागार एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया l कार्यक्रम का उद्देश्य विद्यार्थियों के अंदर भारत के अंतरिक्ष विज्ञान अनुसन्धान की उपलब्धियों की जानकारी देना था, उनके अंदर अंतरिक्ष विज्ञान एवं रिमोट सेंसिंग (दूरस्थ संवेदन) को लेकर उत्सुकता जगाना था।
कार्यक्रम का प्रारम्भ भारतीय परंपरा अनुसार अतिथियों के स्वागत एवं दीप प्रज्ज्वलन से किया गया l सर्वप्रथम इंस्टीटूशन इन्नोवेशन कौंसिल के प्रेसिडेंट डॉ. राम साहू ने स्वागत भाषण दिया तथा रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेल के चेयरमैन प्रोफेसर हेमवती नंदन ने कार्यक्रम का विवरण प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम की मुख्य अथिति विश्वविद्यालय की माननीय कुलपति महोदया प्रोफेसर अन्नपूर्णा नौटियाल जी ने अपने अभिभाषण की शुरुआत इस वर्ष के राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस की थीम ‘टचिंग लाइफ वाईल टचिंग द मून’ से की। उन्होंने हमारे वैज्ञानिकों की देश के प्रति निष्ठा और समर्पण, साथ ही विश्व कल्याण में उनके योगदान पर चर्चा की। उन्होंने बताया की विश्वविद्यालय का रिमोट सेंसिंग विभाग विभिन्न क्षेत्रों जैसे आपदा प्रबंधन, फारेस्ट फायर, फारेस्ट मॉनिटरिंग के क्षेत्र में बहुत अच्छा काम कर रहा है l उन्होंने सभी विभागों को एक साथ मिलकर विश्वविद्यालय के हित में कार्य करने की प्रेरणा दी । और अपने अभिभाषण का समापन ‘हम अब आगे बढ़ चुके हैं और आगे बढ़ेंगे’ के वाक्य के साथ किया।
इसके बाद, कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ. सी. एम. भट्ट, वरिष्ठ वैज्ञानिक, भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान (आई.आई.आर.एस.), देहरादून ने सभा को संबोधित किया। उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान में विक्रम साराभाई के योगदान और इसरो तथा आई.आई.आर.एस. की स्थापना के बारे में जानकारी दी। उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के इतिहास के विभिन्न महत्वपूर्ण मील के पत्थरों पर प्रकाश डाला और विभिन्न प्रक्षेपण यानों, लैंडर के यंत्रों, रोवर आदि के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने सेटेलाइट मिशन के छः प्रकारों जैसे फ्लाई-बाई ऑर्बिटर, इम्पैक्ट मिशन, लैंडर, रोवर और मानव दल की बारीकियों एवं उपयोग के बारे में विस्तार से जानकारी दी l उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करने वाला पहला देश बना और चंद्रमा पर हाइड्रॉक्सिल और सल्फर की खोज करने वाला पहला देश भी भारत ही है।
कार्यक्रम के दूसरे वक्ता डॉ. अखिलेश नौटियाल, एन. आई. टी. श्रीनगर ने छात्रों को रिमोट सेंसिंग के विभिन्न आयामों, दैनिक जीवन में रिमोट सेंसिंग के उपयोग के बारे में बताते हुए कहा कि आजकल ऑनलाइन डिलीवरी, मौसम की सटीक जानकारी लेकर आपदा से बचाव आदि में रिमोट सेंसिंग का बहुत योगदान है । साथ ही डॉ नौटियाल ने विद्यार्थियों को रिमोट सेंसिंग क्षेत्र में करियर के अवसरों के बारे में जानकारी देते हुए रिमोट सेंसिंग की भूमिका और आवश्यकता पर चर्चा की।
प्रोफेसर सी. एम. शर्मा, डीन स्कूल ऑफ़ लाइफ साइंसेज, ने रिमोट सेंसिंग के सर्वप्रथम प्रयोग के बारे में बताया, जो जर्मनी में जंगलों के सर्वेक्षण के लिए किया गया था। उन्होंने विभिन्न प्रकार की सैटेलाइट्स और उनकी कार्य पद्धति, एक्टिव और पैसिव रिमोट सेंसिंग के बारे में भी विस्तार से चर्चा की। उन्होंने यह भी बताया कि रिमोट सेंसिंग का उपयोग विभिन्न मौसमी गतिविधियों की जानकारी प्राप्त करने के लिए कैसे किया जा सकता है।
कार्यक्रम में प्रोफेसर एच. सी. भट्ट, डीन स्कूल ऑफ़ साइंसेज, ने भारतीय चंद्रयान मिशन के बजट पर चर्चा की और बताया कि भारत ने तीसरे प्रयास में चंद्रमा पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग की। उन्होंने प्रज्ञान रोवर द्वारा चंद्रमा की सतह पर किए गए अवलोकन के बारे में जानकारी दी और इंडीजीनस रिसर्च के माध्यम से मानव कल्याण की संभावनाओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हमें अपने ज्ञान का उपयोग केवल धन अर्जित करने के लिए नहीं, बल्कि मानव कल्याण और देश के विकास के लिए भी करना चाहिए।
कार्यक्रम में भारतीय अंतरिक्ष दिवस के उपलक्ष्य में विश्वविद्यालय में आयोजित पोस्टर एवं प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताओ के विजेताओं को माननीय कुलपति महोदया एवं अतिथियों द्वारा स्मृति चिन्ह एवं प्रमाणपत्र भी प्रदान किये गए l
कार्यक्रम में, डॉ भास्कर, डॉ सुनील, डॉ संजय, डॉ सुरेंद्र, डॉ रोहित, डॉ जीतेन्द्र, डॉ विनीत मौर्य, डॉ अनिल शुक्ला, डॉ विभीषण रॉय आदि भी उपस्थित थे।
कार्यक्रम के अंत में विश्वविद्यालय के रिमोट सेंसिंग विभाग के डॉ सुभाष बेरा ने सभी अतिथियों, आगंतुकों एवं आयोजन को सफल बनाने में लगे सभी संकाय सदस्यों एवं विद्यार्थियों का धन्यवाद प्रस्तुत किया।