विजय बहुगुणा
श्रीनगर गढ़वाल(ब्यूरो) । ऐतिहासिक बैकुंठ चतुर्दशी मेले की तीसरी संध्या लोकभाषा और लोकसंस्कृति के रंगों से सराबोर रही। श्रीनगर में आयोजित गढ़वाली कवि सम्मेलन में कवियों ने अपनी ओजस्वी कविताओं के माध्यम से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। सम्मेलन का संचालन कवि ओमप्रकाश सेमवाल (रुद्रप्रयाग) ने किया।
जिन्होंने कविता ‘त्वे मा नव निर्माण का हुनर छन’ से कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई। कार्यक्रम की शुरुआत अनुसुईया बडोनी ‘अंशी कमल’ (श्रीनगर) ने सरस्वती वंदना से की। इसके बाद उन्होंने गीत ‘चल त्वे तैं मि सैर करौलु अपणा गढ़-कुमाऊ कि’ सुनाकर श्रोताओं को अपनी भाषा-भूषा से जोड़ा। संदीप रावत, जो इस कवि सम्मेलन के संयोजक भी रहे, ने अपनी कविता ‘जब खुलदन कैकि जिंदगी का पन्ना’ और गढ़वाली ग़ज़ल ‘त्वे मिलणा कु जिंदगी तरसदि रै’ से सबका दिल जीत लिया।
जय विशाल गढ़देशी (कर्णप्रयाग) ने अपनी रचना ‘छड़छड़ी झपोड्यूं तेरी प्रीतै झौळ मा’ से प्रेम की कोमल भावनाओं को स्वर दिया। जगदम्बा चमोला (रुद्रप्रयाग) ने बचपन की स्मृतियों को ताजा करते हुए कविता ‘बचपन का दिन बि कन छा, हम कुछ बि कैरी चार बणोन्दा छा’ पेश की। मुरली दीवान (नागनाथ पोखरी) ने दार्शनिक अंदाज में कहा ‘मि स्थिर छौं कि गरिमान छौं कि गतिमान छौं’, वहीं
नरेन्द्र रयाल (ऋषिकेश) ने विकास और शिक्षा पर व्यंग्य करते हुए कविता ‘बणै छौ प्रधान लिखै-पढ़ाई कि, कारला यो विकास पुल्ये-पतै कि’ सुनाई। साइनी कृष्ण उनियाल (श्रीनगर) ने अपनी कविता ‘कई ऐग्येनि क्वी ऐकि चली गैनि, क्वी त्वे मा रचि गैनि बसगैनि’ से जीवन की नश्वरता पर भावपूर्ण प्रस्तुति दी। उपासना सेमवाल (गुप्तकाशी) ने महिला सशक्तिकरण पर आधारित कविता ‘कागज-कलम उकरी जब ब्येटीन जब अपणा बारा मा लिखि’ से सबको प्रभावित किया। अनीता काला (श्रीनगर) ने अपनी कविता ‘य माटी चंदन धरती स्वर्ग समान’ से मातृभूमि के गौरव का बखान किया।
वहीं कुसुम भट्ट (अगस्त्यमुनि) ने आधुनिकता की अंधी दौड़ पर व्यंग्य करती कविता ‘विकास कि दौड़ मा अटगणू च मनखी’ सुनाई।