विजय बहुगुणा
श्रीनगर गढ़वाल(ब्यूरो)। उत्तराखंड में सेब का उत्पादन बढ़ाने हेतु राज्य सरकार द्वारा सेब मिशन योजना चलाई जा रही है, जिसके अन्तर्गत बागवानों को 60 से 80 % तक का अनुदान दिया जा रहा है।
सेब की बागवानी उन्हीं क्षेत्रों में सम्भव है जहां शीत काल में तापमान लगभग 7° से .या इससे कम तापमान 1000 से 1600 घण्टे तक रहे और पौधों की बढ़ौतरी के समय तापक्रम 21° से. से 24 से. के आस पास रहे। उत्तराखंड में ऐसे स्थान समुद्र तट से 2000 से 2800 मीटर की ऊंचाई पर ही स्थित हैं।
उत्तराखंड राज्य का अधिकांश भाग भौगोलिक रुप से temperate zone (शीतोष्ण )नही है ,उत्तराखंड राज्य 28 – 31 डिग्री उत्तरीय अक्षांश (latitude)पर है,जबकि हिमाचल प्रदेश 30 – 33 डिग्री उत्तरी अक्षांश पर है हिमाचल प्रदेश में जितनी ठंड 1500 मीटर पर पड़ती है उत्तराखंड में उतनी ही ठंड 2000 मीटर की ऊंचाई पर पड़ती है। यहां पर उंचाई व बर्फीले पहाड़ों का लाभ लेते हैं अब जलवायु परिवर्तन एवं अन्य कारणों से पहाड़ियों में उतनी ठंड नही मिल पाती है जितनी सेब के पेडौं के लिए आबश्यक है।
राज्य सरकार द्वारा सेब के उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है जिसके अन्तर्गत राज्य में एपिल मिशन योजना चलाई जा रही है। योजना में लगे अधिकतर बाग जो 2000 मीटर से कम की ऊंचाई में तथा दक्षिण ढलान पर लगे हैं उनमें कैंकर,रूट रोट रूट वोरर ऊली एफिड माइट आदि कीट व्याधियों के कारण नष्ट होने लगे हैं। कुछ स्थानों पर सेब के बाग अच्छे परिणाम भी देने लगे हैं।सेव उत्पादन के लिए राज्य के अधिक ऊंचाई वाले उत्तरी भाग जो 30 डिग्री उत्तरीय अक्षांश ( North latitude ) से ऊपर हैं तथा हिमाचल प्रदेश के समीप है, जनपद उत्तरकाशी, टेहरी में थत्यूड/ जौनपुर क्षेत्र एवं देहरादून में चकरौता/ त्यूणी वाला क्षेत्र सेब उत्पादन के लिए अनुकूल है तथा इन क्षेत्रों में बागवान अच्छा सेब उत्पादन कर रहे हैं। नैनीताल के रामगढ़ व अन्य क्षेत्रों में भी जहां सेब के लिए अनुकूल जलवायु है सेब के नये बाग विकसित हो रहे हैं। सेब उत्पादन के लिए 2000 Mt से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र जो हिमालय के नजदीक है तथा जहां आसपास जंगल हों जिससे अनुकूल माइक्रोकल्यमेट मिल सके तथा जिनका ढाल उत्तर पश्चिम दिशा का चयन करें। दक्षिण एवं दक्षिण पश्चिम ढलान पर सेब का बाग न लगायें।
सेब के बाग लगाने में सावधानियां।
सेब में री प्लांनटेशन की बहुत बड़ी समस्या है पुराने सेब के बागों में यदि नये सेव के बाग लगाने के प्रयास किये जाते हैं तो कम सफलता मिलती है ,इन स्थानों में गड्ढो को सौर ऊर्जा या फार्मेलीन से उपचारित कर ही सेब के पौधे लगायें ।
टिशू कल्चर से तैयार रूट स्टाक वाले पौधों का प्रदर्शन अच्छा देखने को नहीं मिलता है अतः क्लोनल रूट स्टाक वाले पौधों को वरीयता दें।
दक्षिण व दक्षिण पश्चिम ढाल पर सेब के बाग न लगाएं।
ऐसे क्षेत्र जहां तीव्र गति से हवाएं चलती हों, सेब उत्पादन के लिए उपयुक्त नहीं है । हवा के कारण सेब का पौधा एक तरफ झुक जाता है और पौधे की एक समान वृद्धि नहीं होती है। फूल खिलने के समय शुष्क तथा तेज हवाएं फूलों को हानि पहुँचाती हैं और मधुमक्खियों की परागण गतिविधि में भी बाधा डालती हैं, जिससे फल उत्पादन में भारी कमी हो जाती है।
सेब उत्पादन के लिए बसंत ऋतु में पाला, ठण्ड या ओला पड़ने वाले स्थान भी उपयुक्त नहीं हैं। फूल आने के बाद यदि तापमान 2.2° सै. से नीचे चला जाता है तो फूल मर जाते हैं। परागण क्रिया और फल बनने के लिए 21. 1° से. से 26.7° से. तापमान का होना आवश्यक है।
निमेटोड का क्लोनल रूट स्टाक वाले पौधों पर अधिक प्रकोप होता है। अतः नैमैटोड फ्री स्थानों का चयन करें।
मृदा परीक्षण करायें, सेब की अच्छी उपज हेतु मिट्टी का पीएच मान 5.8 से 6.8 के बीच होना चाहिए । पीएच मान कम होने पर चूने का प्रयोग करें। भूमि का कार्वन लेबल 0.8 से कम नहीं होना चाहिए।
सिंचाई की व्यवस्था सुनिश्चित करें। क्लोनल रूट स्टाक के पौधों में मुसला जड़ नहीं होती साथ ही जड़ें जमीन में गहरी नहीं जाती जिस कारण इन पौधों को लगातार सिंचाई करनी पड़ती है।
अच्छी उपज हेतु 25 से 30% तक दो या तीन परागण कर्ता किस्मों का रोपण करें।
उच्च घनत्व बागीचे में जैविक मल्व का प्रयोग करें क्योंकि समय के साथ ये सड़ जाती हैं और मिट्टी का उपजाऊपन व जैविक तत्वों को बढ़ावा देती हैं।
अनुकूल जलवायु, ऊंचाई ,ढलान, भूमि व सूक्ष्म वातावरण होने पर ही सेब के बाग लगायें। एम 9 रूट स्टॉक्स पर उच्च घनत्व की सेब की खेती केवल उन बागवानों के लिए फायदेमदं है जिनके पास सभी साधन ( मजबूत स्पोर्ट सिस्टम निर्माण, उचित ड्रिप सिंचाई प्रणाली, फर्टीगेशन सिस्टम लगाने की क्षमता ) अपना समय व सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध हो।
सेब मिशन योजना के अन्तर्गत सेब के बाग , विशेषज्ञों व सफल बागवान जो सेब की बागवानी कर रहें हैं उनसे विचार-विमर्श के बाद ही लगायें कहीं ऐसा न हो आपका धन व मेहनत बेकार जाय और बाद में पछताना पड़े।